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Varuthini Ekadashi Vrat Katha

वरूथिनी एकादशी, यहां जाने व्रत कथा और पूजन विधि

Varuthini Ekadashi : इस दिन भगवान विष्णु के वाराह अवतार की पूजा अर्चना की जाती है। वैशाख मास की कृष्‍ण पक्ष की तिथि को आने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहते हैं। वहीं 19 अप्रैल 2020 को सुबह 05 बजकर 51 मिनट से सुबह 08 बजकर 27 मिनट तक इसका पारण करने का मुहूर्त है। इस व्रत को करने बहुत सौभाग्य और पुण्य मिलता है। इस साल यह एकादशी 18 अप्रैल 2020 को है।

पूजन विधि

इस दिन भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से वराह तीसरे अवतार कहे जाते हैं। एकादशी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें. साफ-सुथरे कपड़ें पहनें और जल पुष्क साथ व्रत का संकल्प लें. पूजा के स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करें. भगवान की मूर्ति का गंगाजल से अभिषेक करें. अब उनको पीले फूल, अक्षत्, धूप, चंदन, रोली, दीप, फल, तिल, दूध, पंचामृत आदि अर्पित करें. श्रीहरि को पीले मिष्ठान, चने की दाल और गुड़ का भोग प्रिय है.

व्रत कथा

प्राचीन काल में नर्मदा नदी के किनारे बसे राज्य में मांधाता राज करते थे। वे जंगल में तपस्या कर रहे थे, उसी समय एक भालू आया और उनके पैर खाने लगा। मांधाता तपस्या करते रहे। उन्होंने भालू पर न तो क्रोध किया और न ही हिंसा का सहारा लिया। पीड़ा असहनीय होने पर उन्होंने भगवान विष्णु से गुहार लगाई। भगवान विष्णु ने वहां उपस्थित हो उनकी रक्षा की। पर भालू द्वारा अपने पैर खा लिए जाने से राजा को बहुत दुख हुआ। भगवान ने उससे कहा- हे वत्स! दुखी मत हो। भालू ने जो तुम्हें काटा था, वह तुम्हारे पूर्व जन्म के बुरे कर्मो का फल था। तुम मथुरा जाओ और वहां जाकर वरुथिनी एकादशी का व्रत रखो। तुम्हारे अंग फिर से वैसे ही हो जाएंगे। राजा ने आज्ञा का पालन किया और फिर से सुंदर अंगों वाला हो गया।

दूसरे प्रकार की कथा :

नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नाम के राजा की राज था। राजा की रुचि हमेशा धार्मिक कार्यों में रहती थी। वह हमेशा पूजा-पाठ में लीन रहते थे। एक बार राजा जंगल में तपस्या में लीन थे तभी एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा इस घटना से तनिक भी भयभीत नहीं हुए और उनके पैर को चबाते हुए भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया। तब राजा मान्धाता ने भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगे। राजा की पुकार सुनकर भगवान विष्णु प्रकट ने चक्र से भालू को मार डाला।

राजा का पैर भालू खा चुका था और वह इस बात को लेकर वह बहुत परेशान हो गए। दुखी भक्त को देखकर भगवान विष्णु बोले- ‘हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करों। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगो वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था। भगवान की आज्ञा मानकर राजा ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक यह व्रत किया। इसके प्रभाव से वह सुंदर और संपूर्ण अंगो वाला हो गया।

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