ISRO RLV Landing : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने खास स्पेस शटल बनाया है जिसके बारे में जानने के बाद दुनिया भर के साइंटिस्ट हैरान है. इस तकनीक का फायदा अमेरिका और रूस भी उठाना चाह रहे हैं लेकिन भारत ने इस दिशा में एक कदम बढ़ाते हुए इसकी टेस्टिंग के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं. बड़ी बात ये है कि अगर ये टेस्टिंग सफल हुई तो दुनिया भर में एक बार फिर भारत साइंस की दुनिया में अपनी अलग पहचान बना लेगा. दरअसल RLV यानी रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल की लैंडिंग का एक्सपेरिमेंट होने वाला है. इसकी प्रोसेस कुछ ऐसी होगी की एक हेलिकॉप्टर से इस RLV को जमीन से 3 किलोमीटर ऊपर ले जाया जाएगा और फिर उसके बाद वहां ये व्हीकल खुद नीचे आएगा और रनवे पर ऑटोमैटिक तरीके से लैंड करेगा. यहां सभी साइंटिस्ट की सांसे धमी रहेंगेी इसकी सफल लैंडिंग पर, यदि इसमें RLV सफल हो गया तो भारत अंतरिक्ष में न सिर्फ सैटेलाइट लॉन्च कर पाएगा. बल्कि भारत की सुरक्षा भी कर पाएगा.
भारत के साथ अमेरिका और रूस भी इसका फायदा उठाना चाहते हैं और अगर ऐसा हुआ तो इसके जरिए किसी भी दुश्मन के सैटेलाइट्स को उड़ाया जा सकता है. इस व्हीकल के जरिए डायरेक्टेड एनर्जी वेपन (DEW) चलाए जा सकते हैं. यानी ऊर्जा की किरण भेजकर दुश्मन के संचार तकनीक को खत्म किया जा सकता है. इसके अलावा बिजली ग्रिड उड़ा देना या फिर किसी कंप्यूटर सिस्टम को नष्ट कर देना काफी आसाना हो जाएगा. अभी ऐसे स्पेस शटल बनाने वालों में अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और जापान का नाम ही शुमार है. रूस ने 1989 में ऐसा ही शटल बनाया था जिसने सिर्फ एक बार ही उड़ान भरी थी. बता दें कि 6 साल पहले 2016 में भी एक बार RLV की टेस्टिंग हो चुकी है. उस समय करीब 65 किलोमीटर तक जाने के बाद ये 180 डिग्री पर घूमकर वापस आ गया था और बाद में इसे बंगाल की खाड़ी में उतार लिया गया.
वहीं पिछले महीने इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ ने कहा था कि हम चुपचाप रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल के प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाना चाहते हैं. यह बेहद सस्ता प्रयोग है. सोमनाथ आगे ये भी कहा था कि अगर सबकुछ सही रहा तो 2030 तक रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल पूरी तरह से काम करना शुरु कर देगा. इससे बार-बार रॉकेट बनाने का खर्चा कम होगा और ये सैटेलाइट को अंतरिक्ष में छोड़कर वापस आ सकता है. यानी इससे स्पेस मिशन की लागत 10 गुना तक कम हो जाएगी.
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