तूफानों से आँख मिलाओ,
सैलाबों पर वार करो.
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो,
तैर के दरिया पार करो.
और इश्क़ ख़ता है तो ये ख़ता,
एक बार नहीं सौ बार करो.
दीमकों को
पढ़ना नहीं आता
वे चाट जाती हैं
पूरी किताब।
आदमी आदमी को क्या देगा
जो भी देगा वही ख़ुदा देगा
मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिब है
क्या मेरे हक़ में फ़ैसला देगा
ज़िन्दगी को क़रीब से देखो
इसका चेहरा तुम्हें रुला देगा
हमसे पूछो दोस्ती का सिला
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा
– सुदर्शन फाकिर
चीजों के गिरने के नियम होते हैं
मनुष्यों के गिरने के
कोई नियम नहीं होते
लेकिन चीजें कुछ भी तय नहीं कर सकतीं
अपने गिरने के बारे में
मनुष्य कर सकते हैं
– नरेश सक्सेना
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी,
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन.
– अल्लामा इक़बाल
ज़िंदगी को जीना आसान बनाना पड़ता है
कुछ सब्र करके, कुछ बर्दाश्त करके
और बहुत कुछ नज़र अंदाज़ करके
वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है
महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से
ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है
– बशीर बद्र
बुरा न मान अगर यार कुछ बुरा कह दे
दिलों के खेल में ख़ुद्दारियाँ नहीं चलतीं
– कैफ़ भोपाली
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियोंसे
किसको मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं
चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब
सोचते रहते हैं किस राहगुज़र के हम हैं..
– निदा फ़ाज़ली
सांस का मतलब जान नहीं
जीना कोई आसान नहीं
प्यार की बाज़ी हार गये तो
हार के भी नुकसान नहीं
जहनों में वह जंग है जारी
जिसका कोई एलान नहीं
गांव के मेले – पनघट देखो
शहर में हिन्दुस्तान नहीं है
– वसीम बरेलवी
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की,
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की.
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की,
ख़म शीशए, जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की.
महबूब नशे में छकते हों तब देख बहारें होली की.
– नज़ीर अक़बराबादी
जुगनू कोई सितारों की महफ़िल में खो गया
इतना न कर मलाल जो होना था हो गया
बादल उठा था सबको रुलाने के वास्ते
आँचल भिगो गया कहीं दामन भिगो गया
– बशीर बद्र
आंसुओं से धुली ख़ुशी की तरह
रिश्ते होते हैं शायरी की तरह
जब कभी बादलों में घिरता है
चाँद लगता है आदमी की तरह
किसी रोज़न किसी दरीचे से
सामने आओ रोशनी की तरह
– बशीर बद्र
ये माना ज़िंदगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारो चार दिन भी
ख़ुदा को पा गया वायज़, मगर है
ज़रूरत आदमी को आदमी की
महब्बत में करें क्या हाल दिल का
ख़ुशी ही काम आती है न ग़म की
लड़कपन की अदा है जानलेवा
गज़ब ये छोकरी है हाथ-भर की
– फ़िराक़ गोरखपुरी
ख़ूबी और ख़ामी दोंनो
होती है हर शख़्स में
आप क्या तलाश करते है
ये आपके विवेक पर निर्भर करता है
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