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Lion Dr Vandana Gupta Sagar

बलात्कारी मानसिकता का, अंत होना चाहिए – डाॅ वंदना गुप्ता

स्वच्छ भारत अभियान में वैचारिक स्वच्छता अभियान की एक और पहल . सुनिए, स्वच्छ भारत मिशन सागर कैंट बोर्डसागर ब्रांड एम्बेसेडर डाॅ. वंदना गुप्ता को –

स्वच्छ भारत मिशन का, ये भी संकल्प होना चाहिए
बलात्कारी मानसिकता का, अंत होना चाहिए

मां-बहन-बेटी गालियां, हर बात पर हैं दे रहे
शक्ति का अपमान, दिन व रात पुरूष कर रहे
मर्दानगी की ये निशानी, अब छोड़ देना चाहिए
चूड़ियों की शक्ति का, एहसास होना चाहिए
समाज की ये सीड़न अब बंद होना चाहिए

मां-बहन-बेटी गालियां, अब बंद होना चाहिए

मां-बहन-बेटी गालियां, खौफपैदा कर रहे
हर बात पर हैं गालियां, संदेश क्या तुम दे रहे
खुलकर बलात्कार की, धमकी भरी ये गालिंयां
असुरक्षा भावना, भरती सदा ये गालियां
आधा आबादी का दर्द ये, अब दूर होना चाहिए
बलात्कारी मानसिकता का, अंत होना चाहिए

मां-बहन-बेटी गालियां, अब बंद होना चाहिए

इन गालियों से डरकर, बीबी है काम करती
बेटी सहम सी जाती, मां अपमान घूंट पीती
बढ़ रहे बलात्कार से, सहमी हुई हैं नारियां
दिन रात भय से लड़ रहीं, और बढ़ रही हैं नारियां
इस अपमान को अपराध की श्रेणी में आना चाहिए
कानून संशोधित कर, संविधान लाना चाहिए

मां-बहन-बेटी गालियां, अब बंद होना चाहिए

कन्या भ्रूण-हत्या से न जाने, कितनी प्रतिभाऐं मिटीं
अनुपात गडत्रबड़ हो चला, तब कानून की धारा बनी
आज नारी बेटी जन्म पर, खुशियों के गीत गा रहीं
काननू के सहयोग से, पितृ-सम्पत्ति अधिकार पा रहीं
नारी कर्तव्य निष्ठा का, ऋणी समाज होना चाहिए
राष्ट्र में नारी स्वाभिमान की, अब आवाज उठनी चाहिए

मां-बहन-बेटी गालियां, अब बंद होना चाहिए

अपशब्द पर बने कानून से, काई फरक न पड़ रहा
घर, समाज, कार्यस्थल पर, ये सिलसिला है बढ़ रहा
यौन उत्पीड़न को ये आलियां, दिन रात पोषित कर रहीं
मर्यादायें सभी रिश्तों की, ये तार-तार कर रहीं
नारी को निर्भया की शक्ति, अब महसूस होना चाहियए
21वीं सदी में न्याय, हमको भी मिलना चाहिए

मां-बहन-बेटी गालियां, अब बंद होना चाहिए

कुल को बढ़ाया हमने ही, स्वरक्त से हैं सीचकर
नींद भी हमने गंवायी, सूखे सीने से दूध खींचकर
कष्ट तिने भी सहे, पर रात दिन बिनती करी
परिवार सुखी-समृद्ध हो, इतनी कृपा करना हरी
समाज में अबला की अब, सोच हटना चाहिए
नवरात्रि शक्ति आराधना, सदा याद रखना चाहिए

मां-बहन-बेटी गालियां, अब बंद होना चाहिए

पति, पिता, भाई, बेटे की, हम लाठी ले चलते रहे
थे ढाल हम सबकी मगर, ढलकर सदा बढ़ते रहे
विधवा, सती और बांझ का, हर जहर हम पीते रहे
शक्ति के हैं पुंज हम, अशक्त बन जीते रहे
कानून में हमको सद, कमजोर ही माना गया
अब संविधान शक्ति का सशक्त, आधार हमको चाहिए

मां-बहन-बेटी गालियां, अब बंद होना चाहिए

ताव कितना भी बड़ा हो, नशा ना हमने किया
दिन रात ही परिवार की, सुख समृद्धि का चिंतन किया
समाज को संस्कार युक्त, हमने ही कितने सुत दिए
नर को नरेंद्र बनाने के, तप व जतन कितने किए
नशे में तन-मन पर घाव, पुरूषों ने कितने दिए
हमें सम्मान स्वाभिान से, जीने का हक अब चाहिए

मां-बहन-बेटी गालियां, अब बंद होना चाहिए

पति-पुत्र की दीर्घायुष्य के, कितने ही व्रत हमने किए
निर्जला या सजला-तप, सारे ही हमने किए
शुचि-संकल्प की ये परम्परा, हम ही निभाते आ रहे
पति ही हमारा परम ईश्वर, रीति ये हम निभा रहे
निरंतर नारी के ही त्याग पर, क्या समाज चलना चाहिए
या पुरूष को भी बुरी आदतें, अब बदलना चाहिए

पति-पुत्र की दीर्घायुष्य के, कितने ही व्रत हमने किए
निर्जला या सजला-तप, सारे ही हमने किए
शुचि-संकल्प की ये परम्परा, हम ही निभाते आ रहे

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