इतिहास के पन्नों में दर्ज होने को मजबूर है तांगा सवारी

हरिद्वार। सरकारी अनदेखी और उदासीनता किस प्रकार संस्कृति को खो रही है इसका दृश्य उत्तराखण्ड के हरिद्वार में देखा गया। कभी राजा-महाराजाओं की शान कहलाने वाली तांगे की सवारी आज इतिहास के पन्नों में दर्ज होने को मजबूर है। धर्मनगरी हरिद्वार में रेलवे स्टेशन से बड़ी संख्या में संचालित होने वाले तांगे कभी हरिद्वार में दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालुओं का आकर्षण का केंद्र तो थे ही साथ ही हरकी पौड़ी जैसी विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल के लिए प्रदूषण मुक्त सवारी भी थे। VIDEO

गुड़-चना खाकर सवारियों से भरे तांगे को खींचकर सवारिओं को उनके गंतव्य तक पहुंचाने वाले तंदरुस्त घोड़े आज अपनी कमजोर दुर्दशा की कहानी दर्शा रहे हैं। बिना प्रदुषण और किसी भी जीव को नुक्सान ना पहुंचाने वाले इस आवागमन के साधन से अपनी जीविका चलाने वाले तांगा चालक भी अब किस तरह सरकारी उपे क्षा से त्रस्त हैं, देखिए।

तांगा चालकों का कहना है कि परिवार का खर्च वहन करना ही मुश्किल हो गया है तो इन घोड़ों की खुराक का इंतजाम कैसे होगा। चालकों का कहना है कि भागदौड़ के इस जीवन में हर व्यक्ति समय के अभाव में मशीनी गाड़ियों में सवारी करने को मजबूर है।

दूसरी और संतों और बुद्धिजीवियों का कहना है कि सरकार संस्कृति और विरासत को खत्म करना चाहती है, उनका आरोप है कि सरकार शहर को हाईटेक बनाने के लिए प्रदुषण फैलाने वाली गाड़ियों को तो लाइसेंस दे रही है परन्तु गरीब तांगा चालकों की आजीविका के साधन को खत्म कर रही है। बुद्धिजीवियों का कहना है कि पर्यावरण अनुकूल इस साधन की दुर्दशा को देखते हुए सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप कर इनकी स्थिति सुधारने के लिए पहल करनी चाहिए।

You May Also Like

More From Author